



???? पुलिस की “कबाड़ एक प्रेम कथा”
या एक भ्रष्टाचार गाथा! ????
“हम हैं रक्षक, हम हैं भक्षक, हमी से कानून, हमी से तक्षक!”
शहडोल…09/फरवरी/2025 सूरज श्रीवास्तव—7000437349
शहडोल, उमरिया और अनूपपुर के संगठित कबाड़ माफिया ने पुलिस मैनेजमेंट के आशीर्वाद से “कबाड़ सिंडिकेट” की ऐसी इबारत लिखी है कि चोर, लुटेरे और माफिया आजकल MBA कर रहे लोग लगने लगे हैं। पुलिसिया व्यवस्था अब कानून की रखवाली छोड़, कबाड़ की ठेकेदारी में लग गई है।
????️ पुलिसिया सौजन्य से कबाड़ का साम्राज्य ????️
पहले छोटे-मोटे कबाड़ी गली-मोहल्लों में टिन-रद्दी खरीदते दिखते थे, लेकिन अब? अब वे “मैनेजमेंट गुरु” बन चुके हैं! कोयला खदानों से लेकर चोरी के वाहन और सूने घर तक, सब पर इनका साम्राज्य फैला हुआ है। चौंकिए मत! इस पूरे खेल में पुलिस केवल “अभिभावक” की भूमिका में है, जो अपने “बच्चों” की तरक्की देखकर मुस्कुरा रही है।
???? थानों के सामने से फर्राटा भरते कबाड़ के वाहन ????
पहले जब पुलिस चोरों को पकड़ती थी, तब जनता वाहवाही देती थी। अब मामला उल्टा हो गया है! कबाड़ माफिया खुद थाने के सामने से चोरी का माल लेकर निकल जाते हैं और पुलिसिया साहबान सिर्फ हवा में उंगली घुमाकर कहते हैं – “अरे! ये तो अपने ही बच्चे हैं!”
यही नहीं, जब्त वाहन थाने में बमुश्किल 24 घंटे टिकते हैं और मामूली जुर्माने के बाद VIP सुविधा के साथ वापस कबाड़ माफिया को सौंप दिए जाते हैं। इससे पता चलता है कि पुलिसिंग अब सेवा नहीं, बिजनेस बन चुकी है!
☠️ 7 लाशों की कहानी और ठीहों की तरक्की ☠️
बीते साल धनपुरी इंकलाइन खदान ने 7 लाशें उगलीं थीं। लगा था कि मामला बड़ा है, सरकार जागेगी, पुलिस सक्रिय होगी, पर हुआ क्या? फाइलें धूल चाट रही हैं, और कबाड़ के ठीहे फल-फूल रहे हैं!
समस्या सिर्फ कबाड़ चोरी की नहीं, बल्कि बेरोजगारी और संगठित अपराध की भी है। बेरोजगार युवा अब नौकरी की तलाश में नहीं, “कबाड़ माफिया” बनने की होड़ में हैं! ठीहे इतने बढ़ गए हैं कि पुलिस को अब नया विभाग खोलना पड़ेगा – “अवैध कबाड़ संरक्षण प्रकोष्ठ!”
???? पर्दे के पीछे “मैनेजमेंट के मुखिया” ????
कहते हैं, जहां पैसा, वहां सत्ता! शहडोल, उमरिया और अनूपपुर के कबाड़ कारोबार में अब सिर्फ माफिया ही नहीं, राजनीतिक आकाओं और प्रशासनिक अधिकारियों की भी हिस्सेदारी है। फर्क सिर्फ इतना है कि पुलिस वाले अब “वर्दीधारी बिचौलिए” बन गए हैं, जो ठीहों की कमाई में अपना कमीशन तय कर चुके हैं।
सबसे मज़ेदार बात? नाम बड़े और दर्शन छोटे! मीडिया में जब कोई बड़ा खुलासा होता है, तो पुलिस कार्रवाई का ढोंग करने लगती है। दो-चार ठीहों पर छापा मारा जाता है, कुछ पुराने टायर जब्त किए जाते हैं, और फिर सब ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है।
???? सरकार सो रही, पुलिस खेल रही, जनता रो रही! ????
अब सवाल ये है कि कबाड़ माफिया और पुलिस की ये “संविधान विरोधी मित्रता” कब तक चलेगी? क्या सरकार कभी जागेगी? या फिर 7 लाशों की जगह 70 लाशें गिरने का इंतजार किया जाएगा?
कानून के रखवालों से यही सवाल है –
“अब और कितने कबाड़ के ठीहे चाहिए साहब?”
“कितने वाहन चोरी करवाने हैं?”
“कितने बेरोजगारों को अपराध की दुनिया में धकेलना है?”
अगर पुलिस ने जवाब नहीं दिया, तो जनता यही कहेगी –
“चलो कबाड़ का धंधा करें, पुलिस तो अपने साथ खड़ी है!”