इंदौर। बिहार की राजनीति में जातीय आधारित राजनीतिक दलों का अपना बोलबाला है। उनको भाजपा या राजद जैसे बड़े दल भी नजरअंदाज नहीं कर पाते हैं। वह लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव दबाव की राजनीति के सहारे गठबंधन में अपना हिस्सा तय कर ही लेते हैं। बिहार में इन दिनों मुकेश सहनी के नाम की बहुत चर्चा हो रही है। भाजपा के साथ राजनीति शुरू करने वाले सहनी ने विकासशील इंसान पार्टी बनाकर निषाद वोट बैंक को साधने की कोशिश की। वह बीते आठ-नौ साल से निषाद आरक्षण की मांग कर रहे हैं। अपने इसी राजनीतिक दांव के चलते उन्होंने 2024 के लोकसभा चुनाव में महागठबंधन से तीन सीटें प्राप्त कर ली।
बिहार में निषाद समाज की आबादी सात से आठ प्रतिशत तक है। बिहार की कई सीटों पर यह समाज हार या जीत तय करता है। ऐसे में इनको साधने की कोशिश हर राजनीतिक पार्टी करती है। भाजपा हरि सहनी को आगे कर निषाद वोट बैंक को साधने के प्रयास में है। वहीं जदयू ने मदनी सहनी को आगे कर दिया है। मुकेश सहनी खुद को सन ऑफ मल्लाह के तौर पर प्रचारित करते हैं। इस बार लोकसभा चुनाव में उनका साथ राजद ने लिया है। दरअसल, राजद ने महागठबंधन में अपने कोटे की तीन सीटें मुकेश सहनी को दी हैं। तब जाकर मुकेश सहनी से राजद की बात बन पाई।
2020 के विधानसभा चुनाव में राजद के साथ मुकेश सहनी का अनुभव थोड़ा खराब रहा है। राजद ने तय किया था कि विधानसभा चुनाव के लिए मुकेश सहनी की पार्टी से गठबंधन किया जाएगा, लेकिन सीटों को लेकर बात नहीं बन पाई। राजद ने अंत समय में अपने गठबंधन करने से मना कर दिया, तो मुकेश सहनी ने राजद पर पीठ में छुरा मारने का आरोप लगाया था।