



पटना। इस बार का लोकसभा चुनाव कई अर्थों में विशेष होगा। एक तरफ एनडीए पिछले चुनाव के परिणाम को दोहराने की उम्मीद कर रहा है तो दूसरी ओर विपक्षी महागठबंधन को भी पिछले चुनाव की करारी हार की भरपाई की आस है। 2019 में जब मोदी लहर थी तब कांग्रेस ने किसी तरह एक सीट जीतकर आत्म सम्मान तो बचा लिया था लेकिन राजद तो यहां पूरी तरह शून्य साबित हो गया था।
इस बार राजद के सामने उस अपमान की भी भरपाई का समय है। लालू व तेजस्वी की राजद के लिए आगे की राह मुश्किल है। इसका कारण स्ट्राइक रेट माना जा सकता है। 2019 में राजद ने सहयोगियों से बंटवारे में 20 सीटें ली थीं। आरा सीट उसने भाकपा को दी थी, शेष 19 सीटों पर खुद चुनाव लड़ा था।
राजद ने गोपालगंज, सिवान, महाराजगंज, सारण, पाटलिपुत्र, बक्सर, जहानाबाद, नवादा, जमुई के साथ ही मधेपुरा, अररिया, झंझारपुर, दरभंगा, शिवहर, सीतामढ़ी, हाजीपुर, वैशाली के अलावा बेगूसराय और बांका में प्रत्याशी उतारे थे।
पिछले चुनाव में राजद का वोट प्रतिशत 15.68 फीसदी था। राजद सहयोगी कांग्रेस ने 9 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। कांग्रेस का वोट प्रतिशत 7.7 फीसदी था। रालोसपा ने पांच सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। वोट प्रतिशत 3.66 था। एक और अन्य सहयोगी दल हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा ने 3 सीटों पर प्रत्याशी दिए और पार्टी को 2.39 फीसदी वोट प्राप्त हुए।
विकासशील इंसान पार्टी भी इस समय चुनाव में राजद के ही साथ थी। उसे तीन सीटें हासिल हुईं और सभी सीटें हारीं। दूसरी तरफ, एनडीए गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी ने 17 सीटों पर चुनाव लड़ा था, वहां उसे 23.6 फीसदी वोट मिले थे। सहयोगी दल जदूय को 21 एवं लोजपा को 7 फीसदी वोट मिले थे।
इस बार राजद का दावा है कि महागठबंधन की सरकार के कार्यों का प्रभाव इस बार के चुनाव में देखने को मिलेगा। दावा है कि पार्टी का वोट प्रतिशत बढ़ेगा एवं अधिक सीटों पर जीत मिलेगी।
हालांकि हकीकत की बात करें तो राजद यहां 26 सीटों पर चुनाव लड़ेगा। उसके सामने भाजपा व जदयू के 22 उम्मीदवार होंगे। जहां तक पिछले चुनाव की बात है, लोकसभा चुनाव में मतदान प्रतिशत में भी महागठबंधन का प्रदर्शन एनडीए की तुलना में कमजोर ही रहा था।